संपादक-शारदा शुक्ला
यों तो भगवान राम सार्वभौमिक और सर्वकालिक हैं,किंतु आजकल भारत में इनकी विशेष धूम है।हम इसके कारणों में नहीं जा रहे।सामान्यता ऐसा होना तो तब चाहिये जब जनता में भक्ति का ज्वार उफान पर हो;किंतु सम्प्रति शायद ऐसा न होकर यह अभियान शासन सञ्चालित है।अगली 22 जनवरी को,जब लोकसभा चुनाव सन्निकट होंगे,तब अयोध्या में बने नए राम म॔दिर में प्राण प्रतिष्ठा होगी और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इसमें मुख्य नायक के रोल में होंगे।यह निर्माण और आगामी धर्म-कर्मकाण्ड अतिशय प्रचारित हो रहा है।श्रीराम भगवान विष्णु के त्रेतायुगीन अवतार थे और महापुरुषों की वास्तविक भक्ति उनके कृत्यों और उपदेशों के अनुसरण में निहित होती है।केवल आरती,कीर्तन,भजन और घण्टा आलोड़न में नहीं।अब देखते हैं कि क्या देश और शासन उनका सही अनुसरक बनने का प्रयास कर रहा है।दस वर्ष तो वर्तमान मोदी सरकार को ही हो गये हैं,जो ‘राम वाले’ब्राण्डेड हैं।श्रीराम सबसे बड़े शस्त्रधारी थे।वे इस विद्या में पूर्णतया निष्णात थे।उनके समान शस्त्रधारी कोई नहीं हुवा,इसी के बल पर उन्होंने दुर्जनों का संहार किया और एक आदर्श राज्य की स्थापना की।श्रीमद्भगवद्गीता के दशम् अध्याय में श्रीकृष्ण ने उन्हें अनुपम शस्त्रधारी मानते हुए कहा है “रामःशस्त्रभृतामहम्”,अर्थात् ‘शस्त्रधारियों में मैं राम हूॅ’;
किंतु वर्तमान में महत्वपूर्ण रक्षा उपकरणों और अस्त्र शस्त्रों की दृष्टि से हम काफी पीछे हैं और दूसरे देशों पर निर्भर हैं।अपने से छोटे देश फ्रांस से हम ‘राफेल’सामरिक वायुयान आयात करते हैं।इजरायल काफी छोटा है,किंतु हम सैन्य सामग्री उससे लेते हैं।सुखोई,ब्रह्मोस,और एस-400 एयर डिफेंस प्रणाली हेतु हम रूस पर निर्भर हैं।हमारा वर्तमान रावण चीन हमसे काफी सबल है और हमारी जमीन दाबे है।हम उससे छोटे शस्त्रधारी हैं।हम तो दूसरे पर निर्भर हैं।राम ने तो ऋषियों,मुनियों और सुग्रीव आदि की मदद की,जबकि हम दूसरों से मदद माॅगते हैं।राम ने ताकत के बल पर भूभि पुत्री(सीता) को मुक्त करा लिया;हम अपनी भूमि कैसे मुक्त करायेंगे?हमारा रावण हमारी और जमीन/अरुणाञ्चल पर गृद्ध दृष्टि रख रहा है।इसके अतिरिक्त राम ने साफ कहा है कि’मुझे सब प्रिय हैं,किंतु उनमें मनुष्य ज्यादा प्रिय हैं।मनुष्यों में ब्राह्मण और ब्राह्मणों में वेदपाठी और उनके अनुसरक’—
सब मम प्रिय सब मम उपजाए।
सबते अधिक मनुज मोंहि भाए।।
तिन मह द्विज द्विज मह श्रुतिधारी।
तिन मह निगम धरम अनुसारी।।
उनकी वरीयता ब्राह्मणों के लिये थी और सत्ता स्वयं यानी क्षत्रिय के हाथ में थी।क्या वर्तमान शासन ऐसा मानता है?कदापि नहीं।आरक्षण बढ़ रहा है।अभी बिहार ने 75%आरक्षण कर दिया है,जिसे बीजेपी ने समर्थन देकर सवर्ण को हाशिये पर कर दिया है।अब केवल 25% नौकरियों पर ही सवर्ण संघर्ष कर सकेंगे,जिसमें और सब भी होंगे।यानी राम को प्रिय वाली कैटेगरी के लोग इस सरकार के लिये सबसे अप्रिय श्रेणी में हैं।केद्रीय सत्ता के शिखर पर राष्ट्रपति दलित और प्रधानमंत्री मोदी पिछड़े वर्ग के हैं।मोदी दस वर्ष से सत्ता में हैं और अगली पञ्चशाला के लिये नाम प्रयोजित कर दिया गया है।राम के निर्देश पर चलते तो क्षत्रिय को सत्ता मिलती और ब्राह्मण(बसिष्ठ)के मार्ग दर्शन में राज्य सञ्चालित होता।
मैं समझता हूॅ शायद सरकार का व्यवहार एवं आचरण रामानुकूल नहीं है।इस पर ध्यान दिया जाना चाहिये,तभी राम कृपा होगी।
रघोत्तम शुक्ल
स्तंभकार