सम्पादक – शारदा शुक्ला
सनातनियों का महा पर्व होली उपस्थित है।इसके आठ दिन पहले यानी फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से ‘होलाष्टक’ लग जाता है,जिसमें विवाह,मुण्डन,गृह प्रवेश,नामकरण,भवन निर्माण,नवीन कार्यारम्भ आदि शुभ कार्यों की वर्जना है।यह 7 मार्च से लागू है।पौराणिक कथावों के अनुसार होलिका दहन दैत्यराज हिरण्यकशिपु की बहन होलिका द्वारा उनके विष्णु भक्त पुत्र प्रह्लाद को दग्ध करने के असफल प्रयास के दिवस के रूप में मनाया जाता है,जिसमें होलिका ही दग्ध हो गई थी।कहते हैं उक्त अष्टमी तिथि से ही दैत्यराज ने प्रह्लाद को यातनाएं देना प्रारम्भ कर दिया था,हालाॅकि भगवान उनकी रक्षा करते रहे।अतःयह कालखण्ड विघ्न बाधावों का मान्य है और यही होलाष्टक प्रारम्भ होने की तिथि है।एक अन्य कथा के अनुसार भगवान शंकर ने कामदेव को इसी तिथि को भस्म कर दिया था,किंतु उसकी पत्नी रति तथा देवतावों की प्रार्थना पर उसे बिना शरीर सब में व्याप्त होने तथा द्वापर में श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न रूप में उत्पन्न होने का वरदान दे दिया था।इससे संसार में प्रसन्नता का वातावरण छा गया।लोग अन्य शुभ कार्य दरकिनार कर खुशियाॅ मनाने लगे तथा धुलेंडी के दिन रंगोत्सव मनाकर यह सत्र पूर्ण किया।
ज्योतिष शास्त्रानुसार इस कालखण्ड में कई ग्रहगण उग्र होते हैं,अतःइस अवधि में शुभ कार्यों की वर्जना है।वैसे धर्म ग्रथों में ऐसे भी उल्लेख हैं कि यह अशुभत्व व्यास,रावी और सतलज नदियों के तटवर्ती प्रदेशों,तथा पुष्कर क्षेत्र में ही लागू होता है;अन्यत्र नहीं–
विपाशेरावती तीरे शतद्रुश्च त्रिपुष्करे।
विवाहादि शुभे नेष्ट होलिकाप्राग्दिनाष्टकम्।।
(मुहूर्त चिंतामणि-1/40)
-रघोत्तम शुक्ल
स्तंभकार