सम्पादक-सुश्री शारदा शुक्ला
ज्योतिष छै शास्त्रों शिक्षा,कल्प,निरुक्त,छन्द,व्याकरण और ज्योतिष-में से सबसे महत्वपूर्ण है।जैसे सब इन्द्रियों में नेत्र प्रधान हैं वैसे ही शास्त्रो में ज्योतिष है।कहा गया है:-
यथा शिखा मयूराणां नागानां मणयो यथा।
तद्वद्वेदांगशास्त्राणां ज्योतिषं मूर्द्ध्नि संस्थितम्।।
यानी जैसे मोर के लिये कलॅगी और नाग के लिये मणि होती है,वैसे ही वेदाॅगों अर्थात् शास्त्रों में ज्योतिष मूर्द्धन्य है।पृथ्वी पर जन्म लेने वाला हर व्तक्ति ग्रहों के अधीन होता है और जन्म,प्रश्न तथा गोचर में जैसे ग्रह पड़े होते हैं,वैसे ही उस जातक का जीवन होता है।धरा पर अवतरित होने पर भगवान भी इससे मुक्त नहीं हैं;क्योंकि ग्रह भी हरि की शक्ति से ही अनुप्राणित हैं,अतः भगवान भी इन्हें अंगीकार करते हैं।भगवान श्रीराम का जीवन भी ग्रहों से शासित रहा।उनका जन्म चैत्र शुक्ल नवमी को मध्याह्न अभिजित मुहूर्त में हुवा,जो 11-48 से12-12 तक होता है।इसे विजय मुहूर्त भी कहते हैं।यह परम शुभ होता है।उनकी लग्न कर्क थी,जिस पर वृहस्पति और चन्द्र बैठे थे।तीसरे भाव में कन्या पर राहु,चौथे में तुला पर शनि,सातवें में मकर पर मंगल,नवें में मीन पर केतु और शुक्र,दशम् में मेष पर सूर्य और ग्यारहवें में वृष पर बुध।
इस तरह उनके पाॅच ग्रह उच्च थे– सूर्य,मंगल,गुरु,शुक्र और शनि।मंगल और शनि पञ्च महापुरुष योगों में क्रमशः ‘रुचक’और ‘सस’योग भी बना रहे थे। इतने प्रबल ग्रहों में जन्म लेने वाला राम जैसा बलवान,प्रतापी ही होता।लग्न पर गुरु,चन्द्र ने ‘गज केसरी’ योग बनाया,जो अक्षय कीर्ति प्रदाता होता है।दशम् में उच्च का सूर्य अखण्ड,दीर्घ कालीन राज्य का प्रदाता बना।उच्च का शनि ‘सस’ योग बनाकर महापुरुष और सप्तम का स्वामी होकर देवी स्वरूपा दिव्यांगना सीता से विवाह कराता है।इसमें उच्च के शुक्र का भी योगदान है;किन्तु वह केतु के साथ बैठा है तथा सप्तम पर मंगल भी माॅगलिक योग बनाकर पत्नी सुख खण्डित करता है। इसीलिये उन्हें स्त्री का वियोग बना ही रहा।प्रारम्भ में राजतिलक की घोषणा के समय शनि की महादशा में मंगल की भुक्ति चल रही थी और ये दोनों जन्म कुण्डली में लग्न को देख रहैं।अतः प्रबल राजभंग योग बना और राज्य की बजाय वन जाना पड़ा।सीता जी के हाथ में भी वनवास की रेखा थी।उच्च के केन्द्रस्थ सूर्य,मंगल उन्हें भारी शत्रुवों पर विजय दिलाते हैं।कन्या का राहु तीसरे में होकर विपुल धन,सेवक,प्रजा आदि बहुत कुछ देता है:—
मृगपति वृष कन्या कर्कटस्थे च राहो
भवति विपुल लक्ष्मी राजराजाधिपो वा।
हय गज रथ नौका मेदिनी पण्डितश्च
स भवति कुलदीपो राहु तुंगो नराणाम्।।
(मानसागरी से)
अपने 42 वें वर्ष में,जब ग्रह अनुकूल हुवे,तब उनका राज्यारोहण हुवा,जो सुदीर्घकालीन,यशदाता और अनुपम रहा।
पुरुषार्थ की महत्ता ज्योतिष भी स्वीकार करती है और धर्म से सब कुछ साध्य है;ग्रहों के कुप्रभावों का भी शमन हो जाता है।श्रीराम धर्म का मूर्तिमान रूप हैं।वाल्मीकि रामायण में कहा गया है “रामो विग्रहवान् धर्मः”।गीता में भी भगवान श्रीकृष्ण ने अपने को “शाश्वत धर्म गोप्ता”कहा है।
यतो धर्मस्ततो जयः।
रघोत्तम शुक्ल , वरिष्ठ स्तंभकार
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