कुछ दिनों से अवध फर्स्ट पर आप लखनऊ के बारे में बेहद रोचक जानकारी पढ़ रहे हैं। जिसे लिखने वाले शकील जी न केवल लखनऊ के वाशिंदे है बल्कि यहां के उलेमा खानदान से ताल्लुक रखते हैं। शकील हसन शमसी उलेमा और शायरों के एक ऐसे परिवार के सदस्य हैं जो राय बरेली ज़िले के जायस और नसीराबाद क़स्बों से आ कर नवाब आसिफ़ुद्दौला के युग में लखनऊ में आबदा हुआ था। उनके नाना मौलाना कल्बे हुसैन साहिब भारतीय उप महाद्वीप के नामी गिरामी धर्म गुरु थे। उनके दादा मौलाना औलाद हुसैन शायर लखनवी जाने माने वक्ता और शायर थे। मौलाना कल्बे आबिद साहिब और मौलाना कल्बे सादिक़ उनके मामू थे जबकि मशहूर शायर नज़ीर ख़य्यामी, सागर ख़य्यामी और मेहदी नज़मी उनके चचा थे। उनके पिता शम्सुल हसन शमसी साहिब लखनऊ के मशहूर शिल्पकार और कलाकार थे उन्होंने गणतंत्र दिवस समारोह के लिए उत्तर प्रदेश की झांकी कई बार बनाई और उनको प्रथम पुरस्कार भी मिला वह खिलौने/ गुड़िया बनाने की कला के लिए बहुत मशहूर थे और उनको राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित भी किया गया था। शकील शमसी ने अपने करियर की शुरआत दिल्ली दूरदर्शन के समाचार विभाग से की थी और फिर वह लखनऊ व भोपाल दूरदर्शन केंद्र में भी समाचार विभाग से समाचार प्रस्तुतकर्ता के रूप जुड़े रहे और मुंबई के फ़िल्म्ज़ डिवीज़न आफ इण्डिया में कमेंटरी राइटर भी रहे। 22 साल नौकरी करने के बाद उन्होंने वी आर एस लिया और फिर लोक सभा टीवी से जुड़े उसके बाद उन्होंने सहारा के उर्दू समाचार पत्र में रेजिडेंट एडिटर के रूप में काम काया और फिर जागरण ग्रुप के उर्दू दैनिक इन्क़िलाब में एडिटर की हैसियत से काम किया और वहीँ से रिटायर हुए। विभिन्न विषयों पर उनकी लगभग 20 किताबें छप चुकी हैं।
previous post