सम्पादक -शारदा शुक्ला
इस साल विजयदशमी का पर्व बुधवार को मनाया गया। इस दिन को हम राम द्वारा रावण को मारे जाने के दिवस के रूप में मनाते हैं।यह गलत परम्परा पड़ गई है।किसी भी ग्रंथ में इस दिन रावण वध का उल्लेख नहीं है।स्कन्द पुराण के अनुसार रावण वध चैत्र कृष्ण चतुर्दशी को हुवा और अंत्येष्टि अगले दिन अमावस्या को।आश्विनि शुक्ल दशमी को देवी भागवत,कृत्तिवास रामायण आदि के अनुसार राम ने विजय हेतु लंका की ओर प्रयाण अवश्य किया था।
रावण जी ने सीता हरण करके गलत अवश्य किया,किंतु उन्होने इसके पश्चात् बलात् दैहिक सम्बन्ध बनाने का कोई प्रयास नहीं किया और सीता जी पवित्र बनी रहीं।उन्होंने सीता जी को अंतःपुर में भी नहीं रक्खा।अलग अशोक वाटिका में त्रिजटा आदि स्त्री रक्षकों के बीच वे रहीं।रावण ब्राह्मण और वेद शास्त्र के ज्ञाता तथा अनेक ग्रंधों के लेखक थे।वह शिव जी के अनन्य भक्त भी थे।
राम ने उनके कुल का सम्पूर्ण विनाश तो किया ही,उनकी पत्नी मंदोदरी को देवर विभीषण की पत्नी बनाये जाने की भी वर्जना नहीं की।उनकी बहन सूर्पनखा के नाक कान भी कटवाये ही थे;सिर्फ इसलिये उस राजकुमारी ने उनसे प्रणय प्रस्ताव रक्खा था।
तब से अब तक रावण के पुतले जलाकर कौन सा संदेश समाज को दिया जा रहा है?आज निर्भया जैसे वीभत्स बलात्कार काण्ड हो रहे हैं,जिनके दोषी अदण्डित रह जाते हैं।निर्भया का बलात्कारी मुस्लिम युवक नाबालिगी की आड़ लेकर बच गया और मौज कर रहा है।वार्षिक पुतला फूॅकना तो दूर की बात है।
राम ने दलित शम्बूक और पिछड़े वर्ग के बालि को भी तो मारा था!क्या उनके पुतले सालाना फूॅके जाते हैं?नहीं।हिम्मत ही नहीं है।उनका वोट बैंक है।केवल ब्राह्मण को ही जला सकते हैं;क्योंकि वे विभक्त हैं और दीन हीन बने हुए हैं।परस्त्री तो सुग्रीव और विभीषण ने भी रक्खी।सगी भाभियाॅ!यदि यह इतना बड़ा अपराध है,तो उनका क्यों आदर किया जाता है?
धर्मभीरु बनकर सालाना पुतला फूॅकने की लकीर पीटने के बजाय कुछ ठोस और व्यावहारिक कार्य होना चाहिये;तथा खुले दिलो दिमाग़ से ऊपर दिये तथ्यों पर सार्थक विमर्श भी समीचीन होगा।
–रघोत्तम शुक्ल
(वरिष्ठ लेखक)
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