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Poetry

ढकिया कै लकडी बेंचि गये

अवधी कबिता

अवधी वइ बडे अभागा हैं
जे गांव कै बखरी बेंचि गये
अम्मा के हाथेक् नीब घनी
बप्पा कै पकडी बेंचि गये
अब जाइ कै सहरी पिंजरन मा
कइदी अस समय बितावत हैं
डीहे कै माटी पुस्तैनी
ढकिया कै लकडी बेंचि गये !

उपकार गांव कै बिसरि गवा
न जलम भूमि कै ख्यालि रहा
हुरदंग वसारा ड्यौढी कै
न इनके जिउ मा सालि रहा
अंगना कै तुलसी हरी भरी
खिरकी कै वखरी बेंचि गये
डीहे कै माटी पुस्तैनी
ढकिया कै लकडी बेंचि गये !

जब मउजा के चउहद्दी मा
लाला बाबा कै नाव रहा
यक होइ तौ अवधी जिकिर करी
जानत गांवन कै गांव रहा
टोला के काकिक् दूध दहिउ
ममता कै गठरी बेंचि गये
डीहे कै माटी पुस्तैनी
ढकिया कै लकडी बेंचि गये !

अंगरेजी अतना माथ चढी
अब गांव से नाता तूरि लिहिन
न छोडिन कुंआ चबुतरा तक
थान्हे कै पइंसा पूर लिहिन
पंचइती बिरवा के साथे
पुरखन कै पगडी बेंचि गये
डीहे कै माटी पुस्तैनी
ढकिया कै लकडी बेंचि गये !!

[ संजय श्रीवास्तव* ” अवधी ” ]
मनकापुर गोंडा उत्तर प्रदेश
संपर्क : ८४३७१३२८९७

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