सम्पादक -शारदा शुक्ला
अखिल भारतीय राष्ट्रीय काॅग्रेस के अध्यक्ष पद का चुनाव हो गया है और परिणाम आ गये।मीडिया में यह खबर की तरह प्रचारित प्रसारित होगा ही क्योंकि देश की सबसे पुरानी पार्टी का सर्वोच्च पदाधिकारी निर्वाचित हुवा है,किंतु जनता के लिये यह कोई खास खबर नहीं है।कोई कुतूहल नहीं है।सभी जानते थे कि मल्लिकार्जुन खड़गे ही जीतेंगे,क्योंकि वे अघोषित तौर पर सोनिया गाॅधी परिवार के प्रत्याशी हैं और उनके ही इशारे पर कामकाज करेंगे।जिस नेहरू-गाॅधी परिवार से अलग होकर भी मनमोहनसिंह दस साल प्रधानमंत्री रहे और रिमोट से सञ्चालित हुए,वैसे ही ये नये अध्यक्ष खड़गे भी होंगे।वे तो चुनावी नतीजे आने के पहले ही कह चुके हैं कि ‘हम सोनिया,राहुल से सलाह लेकर काम किया करेंगे’। दरअसल काॅग्रेस की संस्कृति ही इस परिवार के गिर्द परिक्रमा करने और चाटुकारिता की सीमाएं पार करने वाली रही है।दूर विगत में नेहरू युग में लोकसभा चुनाव सम्पन्न हो जाने के बाद संसदीय दल के नेता चुनने की बैठक में बहुधा जवाहरलाल नेहरू जाते ही नहीं थे,किंतु वे ही नेता चुने जाते थे।1962 में चीन के मुकाबिले अपने देश की जबरदस्त शिकस्त के बावजूद केवल रक्षामंत्री वी के कृष्ण मेनन ही हटाये गये, जैसे नेहरू की कोई गलती ही नहीं थी!इंदिरा गाॅधी के समय में यह नवनीत लेपन और बढ़ा।तत्कालीन काॅग्रस अध्यक्ष देवकांत बरुवा ने तो नारा दे दिया “इंदिरा इज़ इण्डिया एण्ड इण्डिया इज़ इंदिरा” यानी इंदिरा और भारत पर्यायवाची हैं।एमरजेंसी लगाने के बाद देश विदेश में तमाम थू थू हुई।काॅग्रेस सत्ता से च्युत हुई;किंतु जनता पार्टी की सरकार गिर जाने के बाद हुए चुनावी भाषणों में कमलापति त्रिपाठी ने कहा था कि काॅग्रेस को सत्ता से हटाने के लिये जनता को इंदिरा जी से माफी माॅगनी चाहिये”।मालूम हो कि लोकतंत्र में जनता ही सर्वोपरि होती है,जिसे कभी गलत नहीं कहा जा सकता।इसके बाद तो हाल यह हुवा कि इंदिरा गाॅधी की हत्या के बाद उनके बेटे राजीव को काॅग्रेसी पृष्ठभूमि वाले राष्ट्रपति ज्ञानी जैलसिंह ने प्रधानमंत्री पद की शपथ पहले दिला दी और संसदीय दल के नेता वे बाद में चुने गये।यानी सांविधानिक व्यवस्था ही ताख पर रख दी गई।
मनमोहनसिंह के काल का इतिहास तो एक कठपुतली सरकार का रहा,जिसमें बताया जाता है कि फाइलें तक सोनिया गाॅधी के पास जाती थीं।
इधर काफी समय से काॅग्रेस में बाकायदा कोई अध्यक्ष नहीं था,किंतु निर्णय सोनिया परिवार ही ले रहा था।पिछले पञ्जाब विधान सभा चुनाव में राहुल और प्रियंका ही सारे निर्णय लेते रहे अपनी अपरिपक्वता वश इस प्रदेश की सत्ता गवाॅ दी।उत्तरप्रदेश के विधानसभा चुनावों में आगे आगे तो प्रियंका रहीं,नतीजा ढाख के तीन पात रहा,लेकिन स्तीफा प्रदेश अध्यक्ष का लिया गया।यानी राजवंश परिवार का कोई सदस्य कभी गलत हो ही नहीं सकता।
अब फिर एक कठपुतली राष्ट्रीय अध्यक्ष तैयार है। फैसले राहुल और प्रियंका लेंगे,जिम्मेदारी खड़गे की होगी।
लोकतंत्र में विपक्ष एक आवश्यक स्तम्भ है और भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है।यहाॅ सत्तारूढ़ भाजपा के बाद काॅग्रेस ही एकमात्र राष्ट्रीय दल है,शेष सभी क्षेत्रीय हैं।सोनिया गाॅधी यदि संतान मोह नहीं छोड़ती हैं,तो राजनीति में उनके अधकचरे बच्चे आसन्न विधानसभायी चुनावों में पार्टी की खासी दुर्गति करायेंगे और 2024 की लोकसभा में काॅग्रेसी सदस्यों की संख्या इकाई में रह जाने की सम्भावना बन रही है।
लोक और लोकतंत्रीय हितों के रक्षार्थ आवश्यक है कि काॅग्रेस अध्यक्ष व्यावहारिक रूप में इस परिवार से अलग एक अनुभवी व्यक्ति हो,जिससे यह दल विपक्ष की सकारात्मक भूमिका निभा सके और बार बार उपहास का पात्र न बने।
—–रघोत्तम शुक्ल
(वरिष्ठ लेखक)
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