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शठे शाठ्यं समाचरेत्

संपादक-सुश्री शारदा शुक्ला

साध्य और साधन दोनों पवित्र हों तो यह मणि काञ्चन योग कहा जायगा।आदर्श यही है;किंतु व्यवहार जगत में यह योग प्रायः विरल ही हो पाता है।ऐसा आज के ही युग में नहीं सतयुग से चला आया है।ऐसे में साध्य या लक्ष्य की पवित्रता किंवा निर्मलता ही संरक्षित करने योग्य होती है।विदुर नीति भी कहती है “शठे शाठ्यं समाचरेत्” और फिर राजा या शासक की तो चार नीतियाॅ होती ही हैं:साम दाम दण्ड और भेद।

यह भेद नीति आखिर और क्या है?जब हम पुरातन इतिहास और अपने प्राचीन वाङ्मय पर दृष्टिपात करते हैं,तो भी यही पाते हैं कि सही लक्ष्य पाने के लिये प्रचलित नियमों से हटकर,कुछ दाहिने बायें काटकर यदि वह पूरा कर लिया जाय,तो गलत नहीं है।इससे समष्टि का हित ही होता है।अब देखिये अपने धर्म ग्रथों में भगवान विष्णु के दस अवतार मान्य हैं,जिसमें शुरू के चार मानव नहीं थे।प्रथम मानवावतार ‘वामन’हुए हैं,जिनका श्रीविग्रह ही छलपूर्ण था।उनका उद्देश्य दैत्यराज बलि के शासन विस्तार और शक्ति वृद्धि को रोकना था,क्योंकि उससे दैवी शक्तियाॅ क्षीण होतीं और सृष्टि संतुलन बिगड़ता।अतः बलि से छल करके ही उस उद्येश्य की लब्धि की गई।अन्य अवतारों में श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम थे और बहुत लोकमान्य हैं।उन्होंने बालि को छिपकर ही मारा,जो धर्म युद्ध नहीं था।अब नियमों पर चलकर राम उसे मार ही नहीं सकते थे क्योंकि एक वरदान के अनुसार आमने सामने के युद्ध में विपक्षी योद्धा की आधी शक्ति बालि को मिल जाती।ऐसे में छद्म से ही बालि वध सम्भव हो पाया।भगवान श्रीकृष्ण तो पूर्ण ब्रह्म कहे गये हैं।अवतारों से ऊपर।”कृष्णस्तु भगवान स्वयम्”।उन्होंने महाभारत के युद्ध में जगह जगह छल का आश्रय लिया है।कर्ण का रध जब दलदल में फॅसा था और वह युद्धरत न होकर रथ का पहिया बाहर निकाल रहा था,तब अर्जुन को बाण चलाने का निर्देश दिया और वह इस तरह धराशायी किया गया।यही नहीं,भीम और दुर्योधन के गदायुद्ध में भी उन्होंने भीम को दुर्योधन के कटि भाग पर गदा प्रहार का इशारा किया और इसी से वह घायल होकर गिर गया।मालूम हो कि गदा युद्ध के नियमों के अंतर्गत कमर से ऊपर ही प्रहार किया जा सकता था और गाॅधारी के वरदान दृष्टिपात से दुर्योधन का सारा शरीर वज्रवत् हो गया था,कटि को छोड़कर।
तो दुष्ट दलन और सज्जनों की रक्षार्थ पारम्परिक नियम कानूनों फे हटना अवाॅछनीय नहीं है।गीता आध्याय-10/36 में भगवान स्वयं कहते हैं,”द्यूतं छलयतामस्मि तेस्तेजस्विनामहम्”।यानी ‘छलकर्तावों में मैं जुआ हूॅ’।
तब के दुर्दाॅत दैवी वरदानों के सुरक्षा कवच से लैस थे और अबके उनके संस्करण कुछ राजनीतिक दलों के समर्थन से बलिष्ठ रहते हैं।कभी कभी तो विदेशी सहायता की भी उन्हें शक्ति प्राप्त रहती है।अंग्रेज़ लेखक ए जी गार्डिनर की एक कहानी है “आल एबाउट ए डाग”।इस सत्य कथा में उसने एक बस कण्डक्टर के द्धारा कानून के अक्षरशः पालन से सवारियों को हुए कष्ट को रेखांकित किया है;और व्यवहारिक पक्ष ही अपनाने का संदेश दिया है।

रघोत्तम शुक्ल
वरिष्ठ स्तंभकार

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11 comments

Vijay S April 18, 2023 at 11:53 am

शीर्षक और सेंट्रल आइडिया अच्छा है. लेकिन पूरे कंटेंट के इंटेंट से सहमत नहीं हुआ जा सकता. यहां शठ की परिभाषा ही तो तय नहीं हो पा रही. जो मारा गया वो बहुत बड़ा शठ था लेकिन उसके अतिरिक्त भी शठ हैं जो सत्ता के निकट रहते हुए सुखभोगकर रहे हैं.

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