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राहुल का भारत जोड़ो अभियान

सम्प्रति काॅग्रेस पार्टी के,औपचारिक रूप से तो नहीं किंतु व्यवहार रूप से सर्वे सर्वा राहुल गाॅधी एक पदयात्रा पर निकल पड़े हैं।नाम दिया गया है,”भारत जोड़ो”यात्रा।यह 07 सितम्बर से कन्याकुमारी से प्रारम्भ होकर 150 दिन चलेगी और योजनानुसार 12 राज्यों व दो केन्द्र शासित भागों से होते हुए जम्मू कश्भीर पहुॅचेगी।बीच में कुछ राज्यों में होने वाले चुनावों और संसद सत्र में वे शामिल होंगे या नहीं तथा पूरी अवधि पैदल चलेंगे या अन्य भाॅति,इस पर अभी धुॅधलका है।

वैसे जैसा कि नामकरण से लगता है,तदानुसार तो उन्हें सम्पूर्ण यात्रा पैदल ही करनी चाहिये।अब मुद्दा है कि यात्रा को दिये गये नामानुसार वे इस अवधि में करेंगे क्या?भारत जोड़ने की बात कही जा रही है,तो देश की यह टूटन या विखण्डन है कहाॅ?आजादी के बाद तमाम रियासतें अलग थलग थीं,उन्हें तो सरदार पटेल जोड़ गये हैं।1948 में कश्मीर पर पाकिस्तानी कबीलाई हमला हुवा तो चरखा और तकली का राग अलापने वालों ने उसे रोकने के लिये सेना ही भेजी।चरखे से काम नहीं बना।तत्समय राहुल के पिता के नाना ही प्रधानमंत्री थे और भारतीय सेना के जनरल रहे के.एस.थिमैया कश्मीर मोर्चे के प्रभारी मेजर जनरल थे।थिमैया साहब पाकिस्तानियों को पूरे कश्मीर से खदेड़े दे रहे थे कि बीच में ही जवाहरलाल नेहरू शांतिदूत बन गये और युद्ध रोक दिया,जिससे कश्भीर का एक हिस्सा आज भी पाकिस्तान के कब्जे में होकर नासूर है।थिमैया साहब ने यह बात कामराज नाडर से कही भी थी कि ‘अब जब हम सारा कश्मीर लिये ले रहे हैं,तो यह शख्स(नेहरू)युद्ध रोक रहा है”।उनका नेहरू और मेनन से मतभेद भी हुवा।नेहरू इतने पर भी नहीं रुके,वे प्रकरण को राष्ट्रसंघ ले गये और हमेशा के लिये इसे विवादित बना दिया।क्या राहुल इस खण्ड यानी ‘गुलाम कश्मीर’ को भारत में जोड़ेंगे?कदापि नहीं।इतनी उनकी क्षमता ही नहीं है।यही नहीं अगस्त-2019 को भारत के कब्जे वाले कश्मीर की विशेष स्थिति बनाये रखने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को जब वर्तमान मोदी सरकार ने हटाया,तो राहुल की पार्टी के दिग्गज नेता दिग्विजयसिंह ने एक शर्मनाक बयान दिया था कि ,हम सत्ता में आने पर इस निर्णय की समीक्षा करेंगे’।यानी मोदी सरकार के ‘जोड़ने’के प्रयास को फिर विफल करने का प्रयास वे(काॅग्रेसी) करेंगे।

एक टूटन 1962 में भी हुई थी,जब चीन ने हम पर आक्रमण करके देश का बड़ा भू भाग हड़प लिया,और आज तक हम उसे वापस नहीं ले सके।तब भी वही नेहरू देश के प्रधानमंत्री थे,जिन्होंने उसके कुछ ही पहले चीनी प्रमुख चाउ एन लाई से मिलकर “पञ्चशील”का सिद्धांत अंगीकार किया था और ‘हिंदी चीनी भाई भाई’के नारे लगाये थे।क्या ऐसा सोचा जा सकता है कि राहुल इस खोई हुई जमीन पर फिर से कब्जा लेने जा रहे हैं?सवाल ही नहीं उठता है।इतनी उनमें दम कहाॅ?उल्टे वे तो चीन से दोस्ती गाॅठे हैं।काॅग्रेस और चीनी सत्तारूढ़ पार्टी में तो सूचनावों के परस्पर आदान प्रदान का एक समझौता है और राहुल यहाॅ के चीनी दूतावास में मेल मुलाकात कै लिये जाया करते हैं।
दिल्ली की जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में “भारत तेरे टुकड़े होंगे’ के नारे लगने में शामिल कन्हैयाकुमार तो आज राहुल की पार्टी का नेता है।यानी भारत तोड़ने के मंसूबे पाले लोग तो काॅग्रेस का हिस्सा हैं;तब जोड़ने की पदयात्रा न केवल कल्पनावों भरी और विरोधाभासी है बल्कि एक अच्छी ‘मज़ाक’भी है।
वैसे भी राहुल पृथकत्व प्रेमी ही हैं।वे दिल्ली में अपनी वृद्धा एवं रुग्ण माॅ से अलग रहते हैं और अपने चचेरे छोटे भाई वरुण की शादी में आशीर्वाद देने तक नहीं गये थे।

——रघोत्तम शुक्ल

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