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कामशास्त्र के नये आचार्य

केवल बालिगों के लिए

संपादक-शारदा शुक्ला

वर्तमान में हम मैथुनी सृष्टि में जी रहे हैं।नारी और पुरुष के योग किंवा समागम से संतानोत्पत्ति होती है।वैसे तो ‘काम’छै विकारों में से एक और प्रथम है,किंतु धर्म संगत एवं प्रजनन हेतु सम्पन्न किया गया काम दिव्य होता है।भगवान श्रीकृष्ण ने गीता के दशम अध्याय,श्लोक-28 में “प्रजनश्चास्मि कंदर्पः”कहकर शास्त्रोक्त रीति से किये गये जननकारी कंदर्प को अपना रूप बताया है।चूॅकि यह सृष्टि का आदि है,अतः इस पर लेखन और उपदेश भी अति प्राचीन हैं।वेद मानव सभ्यता के आदि ग्रंथ हैं और उपनिषद् उन्हीं का ज्ञानकाण्ड।इसीलिये उन्हें ‘वेदांत’कहा गया है।’वृहदारण्कोपनिषद्’ का ‘चतुर्थ ब्राह्मण” सतोनत्पत्ति और पुत्रमंथ कर्म पर ही आधारित है।इसमें रति क्रिया का वर्णन है।स्त्री की सहमति होने,न होने पर,मनाने और दण्ड भय दिखाकर कामक्रीड़ा करने का वर्णन किया गया है।रति की प्रक्रिया कैसे होगी और उस समय संतान पाने हेतु क्या मंत्र पढ़ा जायगा,यह सब इसमें उल्लिखित है।

केवल बालिगों के लिए
कामशास्त्र के नये आचार्य-

पश्चात् इस शास्त्र पर तमाम ग्रंथ लिखे गये,जिन सबका उल्लेख यहाॅ सम्भव नहीं है;किंतु वात्सायन का “कामसूत्र”इनमें बहुत महत्व रखता है।सात अधिकरणों और छत्तीस अध्यायों वाले इस ग्रंथ रत्न में सूत्रों में इस विद्या का भरपूर वर्णन है।यह तप और ब्रह्मचर्य के बल पर ही सम्भव हुवा।हर प्रकार की मुद्रावों का बारीक वर्णन है।”क्रोधबन्द’रति मुद्रा का उल्लेख करते हुए आचार्य कहते हैं:–

योषित् पादौ हृदि न्यस्य कराभ्यां धारयेत् कुचौ।
यथेष्टं ताड़येत् योनिं क्रोधबन्धः प्रकीर्तितः।।

(अर्थात् स्त्री के चरणों को वक्षस्थल पर रखकर,उरोजों को हाथों में ग्रहण करके,जब पुरुष इच्छानुकूल योनि ताड़न करता है,तो इसे ‘क्रोधबन्ध’मुद्रा कहते हैं।)

इस ग्रंथ की तमाम टीकाएं हुईं और अन्यान्य रचनांएं भी की गईं।भाषा के कवियों में हिंदी साहित्य का रीतिकाल इससे भरा पड़ा है।नायिका भेद और नखशिख वर्णन इससे पटे पड़े हैं।हर प्रकार की नायिका का सटीक वर्णन मिलता है।पद्माकर,बिहारी आदि ने कलमतोड़ लेखन किया है।कामक्रीड़ा में एक ‘विपरीत रति’भी होती है,जब नायक नीचे होता है।बिहारी ने इसका बड़ा महीन और जीवन्त वर्णन किया है,जो एक कुशल कवि द्वारा ही सम्भव है।’बिहारी सतसई में वे कहते हैं–

परेउ जोर विपरीत रति रुपी सुरति रणधीर।
करत कोलाहल किंकिणी गह्यो मौन मञ्जीर।।

सच ही है,नायक की अधोस्थिति के कारण नायिका को भरपूर श्रम करना पड़ रहा है,जिससे कटि सञ्चालन के कारण करधनी तो ध्वनि कर रही है,किंतु पद जकड़े हुए होने से नूपुर कोई स्वर नहीं कर पा रहे हैं।
इन और तमाम ऐसे वर्णॅनों के क्रम में एक नया नाम बिहार के मुख्यमंत्री नितीशकुमार का और जुड़ गया है,जिन्होंने वहाॅ की विधानसभा में जनसंख्या नियंत्रण पर बोलते हुए सम्भोग क्रिया को शिक्षा से जोड़ा और रेखांकित किया कि शिक्षित महिला सम्भोगकाल में पति को संतनोत्पत्ति से रोक सकती है।वहाॅ महिलाएं भी बैठी थीं।पत्रकार बताते हैं कि उन्होंने लज्जावश शिर झुका लिया।नितीश की इस पर बड़ी किरकिरी हो रही है हालाॅकि उन्होंने माफी माॅग ली हैं,किंतु मुद्दा प्रधानमंत्री ने अपने भाषणों में उठा लिया है,महिला आयोग जाॅच की माॅग पर और विपक्षी भारतीय जनता पार्टी स्तीफे पर अड़ी है।
दरअसल विधानसभा कामोपदेश की जगह नहीं थी।नितीश ने इस हेतु गलत मञ्च चुन लिया।वे एक स्वतंत्र ‘कामशास्त्र’लिखकर प्रवर्तित कर सकते थे।

-रघोत्तम शुक्ल
स्तंभकार

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