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शक्ति से शासित हैं त्रिदेव भी

सम्पादक – शारदा शुक्ला

शक्ति स्वरूपा भगवती दुर्गा की उपासना का सत्र शारदीय नवरात्र उपस्थित है।मोटे तौर पर जाना जाता है कि सृष्टि का सृजन,पालन और लय ब्रह्मा,विष्णु और महेश यानी त्रिदेवों के द्वारा किया जाता है;किंतु वास्तविकता इससे कुछ भिन्न है।नारद जी को ऐसा ही संदेह हुवा और भगवान विष्णु से सीधा सवाल कर बैठे तथा उन्हें परम स्वतंत्र और सर्व शक्तिमान मान बैठे।तब भगवान विष्णु ने कहा कि ‘हे देवर्षि!यदि मैं स्वतंत्र होता तो भला क्षीर सागर में शैष शैया और लक्ष्मी जी के साथ विहार छोड़कर मत्स्य,कूर्म आदि हीन योनियों में क्यों अवतार लेता और विपुल वर्ष तक गरुड़ पीठ पर बैठकर निशाचरों से युद्ध क्यों करता’!हम सब उस परमा शक्ति भगवती के इंगित पर अपने अपने कार्यों में प्रवृत्त रहते हैं।”देवी भागवत” में उल्लेख है–
विहाय लक्ष्म्या सह संविहारं को याति मत्स्यादिषु हीन योनिषु।
शय्यां च मुक्त्वा गरुड़ासनस्थःकरोति युद्वं विपुलं स्वतंत्रः।।
“सौंदर्य लहरी”में आद्य शंकराचार्य जी कहते हैं कि ‘शिव भी शक्ति से युक्त होते हैं तभी शक्तिमान हैं और जब ऐसा नहीं है,तो वे हिलडुल भी नहीं सकते ‘शिवः शक्त्या युक्तः यदि भवति शक्तःप्रभवितुम्।न चेदेवं देवो न खलु कुशलः स्पन्दितुमपि”।वैसे भी शिव शब्द से यदि शक्ति स्वरूपा छोटी इ की मात्रा हटा दी जाय,तो ‘शव’ शब्द रह जाता है।शिव महापुराण की तृतीय शतरुद्र संहिता,अध्याय-3 में वर्णन आया है कि जब ब्रह्मा जी सृष्टि सृजन हेतु तप कर रहे थे,तो भगवान शंकर ने उन्हें अर्द्धनारीश्वर रूप में दर्शन देकर संकेत दिया कि स्त्री पुरुष के संयोग वाला सृजन कीजिये।यही नहीं उन्होंने अपनी भृकुटियों से एक नारी प्रकट करके कहा ‘आप दक्ष प्रजापति की पुत्री रूप होकर सृष्टि सृजन में मदद करिये’।प्रलय काल में जब विष्णु जी सो रहे थे और ब्रह्मा जी कमलासन पर विराजमान थे,तो विष्णु कर्ण मलोद्भूत मधु और कैटभ दो राक्षस पैदा हो गये और ब्रह्मा जी को मारने पर उद्यत हुए।उन्होंने विष्णु जी से सहायता चाही,पर व्यर्थ!उन्हें निद्रा देवी अपने अधीन किये थीं।अंततः ब्रह्मा जी ने योगनिद्रा रूप भगवती की स्तुति की।वे प्रकट हुईं और ब्रह्मा जी के निवेदन पर विष्णु जी को मुक्त किया;फिर वे राक्षस मारे गये।देवी भागवत में आये एक अन्य प्रसंगानुसार ये तीनों देव उन शक्तिस्वरूपा की खोज में निकले और अमृत समुद्र मे उन्हें रत्न,मणियों के द्वीप में पाया,जहाॅ पक्षी भी ह्रींकार मंत्रोच्चार कर रहे थे।तीनों ने उनकी विविध भाॅति स्तुति की,ज्ञानोपदेश पाया और सब को उन मातेश्वरी ने उनकी अर्द्धांगिनी शक्तियाॅ प्रदान कीं तथा तीनों पर कृपा करते हुए कहा,”स्मरणाद्दर्शनं तुभ्यं दास्येहं विषमेस्थिते” यानी कोई संकट उपस्थित होने पर आप लोग भुझे स्मरण करना मैं दर्शन दे कर संकट दूर कर दूॅगी’।


उन त्रिपुर सुंदरी का बीज मंत्र ‘ऐं’ अनुस्वार रहित होने पर भी तीनों वेदों का सारांश है।ऋग्वेद का आदि शब्द ‘अग्निमीडे’की अकार,यजुर्वेद के प्रथम शब्द ‘इषेतोर्जेत्वा’ की इ कार तथा सामवेद के ‘अग्न आयाहि’की अ कार मिला देने से “ऐ” बन जाता है।तो ऐसी महिमा है भगवती शक्ति स्वरूपा की।शास्त्रों में सही ही उनका विशेषण कहा गया है ” अतस्त्वामाराध्यां हरिहरविरिञ्चदिभिरपि”;अर्थात् विधि,हरि और हर की आराध्या।

रघोत्तम शुक्ल

स्तंभकार

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